दिवा स्वप्न / स्वर्णधूलि
मेघों की गुरु गुहा सा गगन वाष्प बिन्दु का सिंधु समीरण! विद्युत् नयनों को कर…
Read Moreमेघों की गुरु गुहा सा गगन वाष्प बिन्दु का सिंधु समीरण! विद्युत् नयनों को कर…
Read Moreदूर दूर तक केवल सिकता, मृत्यु नास्ति सूनापन!— जहाँ ह्रिंस बर्बर अरबों का रण जर्जर…
Read More(१) गत युग के जन पशु जीवन का जीता खँडहर वह छोटा सा राज्य नरक…
Read Moreपुष्प वृष्टि हो, नव जीवन सौन्दर्य सृष्टि हो, जो प्रकाश वर्षिणी दृष्टि हो! लहरों पर…
Read Moreआज से युगों का सगुण विगत सभ्यता का गुण, जन जन में, मन मन में…
Read Moreजननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी! जिसका गौरव भाल हिमाचल स्वर्ण धरा हँसती…
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