याद
बिदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर, मेरे एकाकी आँगन में मौन…
Read Moreअपने ही सुख से चिर चंचल हम खिल खिल पडती हैं प्रतिपल, जीवन के फेनिल…
Read Moreजीवन का श्रम ताप हरो हे! सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे! सूने जग गृह…
Read Moreजग के उर्वर-आँगन में बरसो ज्योतिर्मय जीवन! बरसो लघु-लघु तृण, तरु पर हे चिर-अव्यय, चिर-नूतन!…
Read Moreछंद बंध ध्रुव तोड़, फोड़ कर पर्वत कारा अचल रूढ़ियों की, कवि! तेरी कविता धारा…
Read Moreप्रेम की बंसी लगी न प्राण! तू इस जीवन के पट भीतर कौन छिपी मोहित…
Read Moreयुगपथ नामक रचना से खिल उठा हृदय, पा स्पर्श तुम्हारा अमृत अभय! खुल गए साधना…
Read Moreमैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे, सोचा था, पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे, रुपयों…
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