जग के उर्वर-आँगन में
जग के उर्वर-आँगन में बरसो ज्योतिर्मय जीवन! बरसो लघु-लघु तृण, तरु पर हे चिर-अव्यय, चिर-नूतन!…
Read Moreजग के उर्वर-आँगन में बरसो ज्योतिर्मय जीवन! बरसो लघु-लघु तृण, तरु पर हे चिर-अव्यय, चिर-नूतन!…
Read Moreप्राण! तुम लघु-लघु गात! नील-नभ के निकुंज में लीन, नित्य नीरव, निःसंग नवीन, निखिल छबि…
Read Moreलाई हूँ फूलों का हास, लोगी मोल, लोगी मोल? तरल तुहिन-बन का उल्लास लोगी मोल,…
Read Moreजीवन का उल्लास,– यह सिहर, सिहर, यह लहर, लहर, यह फूल-फूल करता विलास! रे फैल-फैल…
Read Moreमेरा प्रतिपल सुन्दर हो, प्रतिदिन सुन्दर, सुखकर हो, यह पल-पल का लघु-जीवन सुन्दर, सुखकर, शुचितर…
Read Moreआज शिशु के कवि को अनजान मिल गया अपना गान! खोल कलियों के उर के…
Read Moreजीवन की चंचल सरिता में फेंकी मैंने मन की जाली, फँस गईं मनोहर भावों की…
Read Moreआँखों की खिड़की से उड़-उड़ आते ये आते मधुर-विहग, उर-उर से सुखमय भावों के आते…
Read Moreअलि! इन भोली बातों को अब कैसे भला छिपाऊँ! इस आँख-मिचौनी से मैं कह? कब…
Read Moreरूप-तारा तुम पूर्ण प्रकाम; मृगेक्षिणि! सार्थक नाम। एक लावण्य-लोक छबिमान, नव्य-नक्षत्र समान, उदित हो दृग-पथ…
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