कलरव किसको नहीं सुहाता?
कलरव किसको नहीं सुहाता? कौन नहीं इसको अपनाता? यह शैशव का सरल हास है, सहसा…
Read Moreकलरव किसको नहीं सुहाता? कौन नहीं इसको अपनाता? यह शैशव का सरल हास है, सहसा…
Read Moreआज नव-मधु की प्रात झलकती नभ-पलकों में प्राण! मुग्ध-यौवन के स्वप्न समान,– झलकती, मेरी जीवन-स्वप्न!…
Read Moreनवल मेरे जीवन की डाल बन गई प्रेम-विहग का वास! आज मधुवन की उन्मद वात…
Read Moreआज रहने दो यह गृह-काज, प्राण! रहने दो यह गृह-काज! आज जाने कैसी वातास छोड़ती…
Read Moreतुम्हारी आँखों का आकाश, सरल आँखों का नीलाकाश- खो गया मेरा खग अनजान, मृगेक्षिणि! इनमें…
Read Moreनील-कमल-सी हैं वे आँख! डूबे जिनके मधु में पाँख— मधु में मन-मधुकर के पाँख! नील-जलज-सी…
Read Moreमुसकुरा दी थी क्या तुम, प्राण! मुसकुरा दी थी आज विहान? आज गृह-वन-उपवन के पास…
Read Moreकब से विलोकती तुमको ऊषा आ वातायन से? सन्ध्या उदास फिर जाती सूने-गृह के आँगन…
Read Moreभावी पत्नी के प्रति प्रिये, प्राणों की प्राण! न जाने किस गृह में अनजान छिपी…
Read More