तुम मेरे मन के मानव,
तुम मेरे मन के मानव, मेरे गानों के गाने; मेरे मानस के स्पन्दन, प्राणों के…
Read Moreतुम मेरे मन के मानव, मेरे गानों के गाने; मेरे मानस के स्पन्दन, प्राणों के…
Read Moreजग के दुख-दैन्य-शयन पर यह रुग्णा जीवन-बाला रे कब से जाग रही, वह आँसू की…
Read Moreविहग, विहग, फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज, कल-कूजित कर उर का निकुंज, चिर सुभग, सुभग!…
Read Moreगाता खग प्रातः उठकर— सुन्दर, सुखमय जग-जीवन! गाता खग सन्ध्या-तट पर— मंगल, मधुमय जग-जीवन! कहती…
Read Moreसुन्दर मृदु-मृदु रज का तन, चिर सुन्दर सुख-दुख का मन, सुन्दर शैशव-यौवन रे सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!…
Read Moreक्या मेरी आत्मा का चिर-धन? मैं रहता नित उन्मन, उन्मन! प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,…
Read Moreसुन्दर विश्वासों से ही बनता रे सुखमय-जीवन, ज्यों सहज-सहज साँसों से चलता उर का मृदु…
Read Moreखिलतीं मधु की नव कलियाँ खिल रे, खिल रे मेरे मन! नव सुखमा की पंखड़ियाँ…
Read Moreजाने किस छल-पीड़ा से व्याकुल-व्याकुल प्रतिपल मन, ज्यों बरस-बरस पड़ने को हों उमड़-उमड़ उठते घन!…
Read Moreकुसुमों के जीवन का पल हँसता ही जग में देखा, इन म्लान, मलिन अधरों पर…
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