अनमिल-अनमिल मिलते
प्राण, गीत तो खिलते।
उड़ती हैं छुट-छुटकर
आँखें मन के नभ पर
और किसी मणि के घर
झिलमिल सुख से हिलते।
किससे मैं कहूँ व्यथा–
अपनी जित-विजित कथा?
होगी भी अनन्यता
छन की लौ के झिलते?
अनमिल-अनमिल मिलते
प्राण, गीत तो खिलते।
उड़ती हैं छुट-छुटकर
आँखें मन के नभ पर
और किसी मणि के घर
झिलमिल सुख से हिलते।
किससे मैं कहूँ व्यथा–
अपनी जित-विजित कथा?
होगी भी अनन्यता
छन की लौ के झिलते?