दीप एक आंखों में जलता
‘लौ’ में मेरा प्रियतम चलता
संज्ञा बनी स्नेह की बाती
सधि बेसुध हो छवि उतारती
आज किसी की लय पुकारती
मौन मुखर हो उठा हृदय का
कैसा प्रेम तनिक परिचय का
ध्वनि से निकल प्रतिध्वनि, ध्वनि को
हेर-हेर कर हाय हारती
आज किसी की लय पुकारती
जनम-जनम की साध न जाने
क्यों उर-सिंधु लगा लहराने
अपने ही बन गई प्रतीक्षा
अपने ही बन गई आरती
आज किसी की लय पुकारती