इक जाम में गिरे हैं कुछ लोग लड़खड़ा के
पीने गए थे चल के लाए गए उठा के
सहबा की आबरू पर पानी न फेर साक़ी
मैं ख़ुद ही पी रहा हूँ आँसू मिला मिला के
वो मेरी लग्ज़िशों पर तन्क़ीद कर रहे हैं
जो मैकदे में ख़ुद ही चलते हैं लड़खड़ा के
इक दिन तू आ के मेरी मन्नत की लाज रख ले
कब से उजाड़ता हूँ महफ़िल सजा सजा के
ईमाँ ‘नज़ीर’ अपना दे आए हैं बुतों को
दिल के बड़े ग़नी हैं बैठे हैं धन लुटा के