कभी बर्बाद होता है कभी आबाद होता है
शबे-फुरकत यही शग्ले-दिले-नाशाद होता है
नहीं है रास्त-रौ को रंज-ओ-राहत की कोई परवा
खजां के जौर से सर्वे-सिही आज़ाद होता है
सम्भल जाये कोई क्यों कर ख़बर ले किस तरह अपनी
तुम्हारी धुन में अपना हाल किस को याद होता है
दिलव-पामाल मिट कर हो गया ख़ुद हासिले-मंज़िल
हक़ीक़त में उजड़ कर ही ये घर आबाद होता है
ख़ुशी से ऐ ‘रतन’ झुक जा सुख़नदानों के कदमों पर
तलम्मुज का शरफ़ पा कर बशर उस्ताद होता है।