एक कहता है कि जीवन की कहानी बेगुनाह,
एक बोला चल रही साँसें-सधीं, पर बेगुनाह,
एक ने दोनो पलक यों धर दिये,
एक ने पुतली झपक ली, वर दिये,
एक ने आलिंगनों को आस दी,
एक ने निर्माण को बनवास दी,
आज तारों से नये अम्बर भरे,
टूटती जंजीर से नव-स्वर झरे।
एक कहता है कि जीवन की कहानी बेगुनाह,
एक बोला चल रही साँसें-सधीं, पर बेगुनाह,
एक ने दोनो पलक यों धर दिये,
एक ने पुतली झपक ली, वर दिये,
एक ने आलिंगनों को आस दी,
एक ने निर्माण को बनवास दी,
आज तारों से नये अम्बर भरे,
टूटती जंजीर से नव-स्वर झरे।