टूटें सकल बन्ध
कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध।
रुद्ध जो धार रे
शिखर – निर्झर झरे
मधुर कलरव भरे
शून्य शत-शत रन्ध्र।
रश्मि ऋजु खींच दे
चित्र शत रंग के,
वर्ण – जीवन फले,
जागे तिमिर अन्ध।