दिल और तूफ़ाने-ग़म, घबरा के मैं तो मर चुका होता।
मगर इक यह सहारा है कि तुम मौजूद हो दिल में॥
न जाने मौज क्या आई कि जब दरिया से मैं निकला।
तो दरिया भी सिमट कर आ गया आग़ोशे-साहिल में॥
दिल और तूफ़ाने-ग़म, घबरा के मैं तो मर चुका होता।
मगर इक यह सहारा है कि तुम मौजूद हो दिल में॥
न जाने मौज क्या आई कि जब दरिया से मैं निकला।
तो दरिया भी सिमट कर आ गया आग़ोशे-साहिल में॥