आओ अमवाजे बहाराँ की तरह बल खाएँ
कभी कौसर कभी गंगा की तरह लहराएँ
मिल के इस तरह मुहब्बत के तराने गाएँ
झूम कर मंदिर ओ मस्जिद भी गले मिल जाएँ
आड़ मज़हब की न लेकर कोई बेदाद कर
बंदगी यूँ करें हमस ब कि ख्ऱुदा याद करे
क्या नई चीज़ कोई शेख़ की दस्तार में है
वही रिश्ता तो है उसमें भी जो जुन्नार में है
ये लड़ाई तो ख़रीदार ख़रीदार में है
नुक़्स जलवे में नहीं तालिबे दीदार में है
जलवा यूँ रक्स करे जलवानुमा झूम उठे
वो मुहब्बत को सदा दो कि ख़ुदा झूम उठे
देश का हुस्न ज़माने को दिखाना है अभी
चाँद-तारों को भी हैरान बनाना है अभी
माँग चोटी से हिमाला को सजाना है अभी
श्मा कैलाश के परबत पे जलाना है अभी
शमा वो शमा जो हर घर में उजाला कर दे
सारी दुनिया को अँधेरा तहो बाला कर दे
कितने परबत हैं जो सर अपना झुकाएँगे अभी
खेते कितने हैं जो बालों को बिछाएँगे अभी
कितने दरिया तिरे पैर आके धुलाएँगे अभी
कितने झरने तुझे आईना दिखएँगें अभी
ऐ मिरे प्यारे वतन तुझको सँवरना होगा
तू हसीं है तुझे इक रोज़ निखरना होगा
हर नदी एक हसीना कीतरह बल खाए
हर रविश रेशमी सारी की तरह लहराए
हर डगर चौथी की दुलहन की तरह शरमाए
देखें नज़रें तो मनाजिर को हया आ आए
अपनी धरती की जवानी अभी भरपूर नहीं
माँग है माँग में हँसता हुआ सिंदूर नहीं
सर तिरे सामने सरकश को झुकाना होगा
उठ के तूफाँ को तिरा नाज़ उठाना होगा
तेरी आवाज़ में आवाज़ मिलाना होगा
हादसों को भी तिरे साज़ पे गाना होगा
ज़िन्दगी आएगी आज़ादी-ए-कामिल की क़सम
मुश्किलें घटने लगीं बढ़ते हुए दिल की क़सम
एक दिन क़िस्मते हर अहले वफ़ा बदलेगी
दिल बझे जाते हैं जिससे वो हवा बदलेगी
जिससे शर्मिदा वतन है वो अदा बदलेगी
ऐ ’नजीर’ एक न इक रोज फ़िजा बदलेगी
सबके चेहरे पे हँसी आएगी नूर आएगा
आएगा आएगा वो दिन भी जरूर आएगा