क्या तुम को ये मालूम है गुमनाम ‘रतन’ भी
हर वक़्त तुम्हें बज़्मे-अदीबां में मिलेगा
क्या तुम को ये मालूम है वो गहन का मुसव्विर
बहता हुआ आलाम के तूफां में मिलेगा
क्या तुम को ये मालूम है वो महवे-महब्बत
दिल थामे हुए कूचाए-जानां में मिलेगा
क्या तुम को ये मालूम है वो रिंदे-ख़राबात
पैमाना ब-कफ़ सुहबते-रिंदां में मिलेगा
क्या तुम को ये मालूम है वो मेहरमे-फ़ितरत
मस्तूर किसी जल्वए-ताबां में मिलेगा
क्या तूं को ये मालूम है वो तालिबे-मंज़िल
खोया हुआ ज़र्राते-परीशां में मिलेगा
काम उस को ज़माने के अलाइक से नहीं कुछ
वो सब से अलग महफ़िले-इम्कां में मिलेगा
हस्ती के दक़ाइक़ हैं बहुत ज़िहन में उस के
हंसता हुआ वो शहरे-खमोशां में मिलेगा
उस तफ्ता जिगर को न कहीं ढूंढने जाओ
वो आह के हर शोलए-लरजां में मिलेगा
जब कोंपलें फूटेंगी चटक जाएंगे गुंचे
हमराह बगूलों के बियाबां में मिलेगा
हंगामा बपा हो जो कभी जोशे-जुनूँ से
वो दश्त बकफ़ गोशए-जिन्दां में मिलेगा
तारीकीए-इसियां में उसे ढूंढने वालो
वो राज़े-जज़ा रहमते-यज़ीदां में मिलेगा
देखे तो कोई उस की फलक सेर निगाहें
ज़ुहरा में मिलेगा कभी केवां में मिलेगा
मफ़्तूने-सुख़न उस को अगर ढूंढना चाहें
वो सहर बयां मानीए-पिंहाँ में मिलेगा
मशरिक़ के शहंशाह की जब होगी हुक़ूमत
वो इल्म की तहक़ीक़ के ऐवां में मिलेगा।