वेदना बनी;
मेरी अवनी।
कठिन-कठिन हुए मृदुल
पद-कमल विपद संकल
भूमि हुई शयन-तुमुल
कण्टकों घनी।
तुमने जो गही बांह,
वारिद की हुई छांह,
नारी से हुईं नाह,
सुकृत जीवनी।
पार करो यह सागर
दीन के लिए दुस्तर,
करुणामयि, गहकर कर,
ज्योतिर्धमनी।
वेदना बनी;
मेरी अवनी।
कठिन-कठिन हुए मृदुल
पद-कमल विपद संकल
भूमि हुई शयन-तुमुल
कण्टकों घनी।
तुमने जो गही बांह,
वारिद की हुई छांह,
नारी से हुईं नाह,
सुकृत जीवनी।
पार करो यह सागर
दीन के लिए दुस्तर,
करुणामयि, गहकर कर,
ज्योतिर्धमनी।