हे मानस के सकाल !
छाया के अन्तराल !
रवि के, शशि के प्रकाश,
अम्बर के नील भास,
शारदा घन गहन-हास,
जगती के अंशुमाल ।
मानव के रूप सुघर,
मन के अतिरेक अमर,
निःस्व विश्व के सुन्दर,
माया के तमोजाल ।
हे मानस के सकाल !
छाया के अन्तराल !
रवि के, शशि के प्रकाश,
अम्बर के नील भास,
शारदा घन गहन-हास,
जगती के अंशुमाल ।
मानव के रूप सुघर,
मन के अतिरेक अमर,
निःस्व विश्व के सुन्दर,
माया के तमोजाल ।