जगत झूठा नज़र आया॥
मतलब की है सगाई,
बातों की है सफाई।
बृथा ही भरमाया॥ जगत…

कोई कहता है कि सोने के महल बनवाएँगे,
कोई कहता है कि शहंशाह हम बन जाएँगे,
पर ये न समझे कि इस जीवन की क्या औकात है।
चार दिनों की चाँदनी और फिर अँधेरी रात है।
मन के हैं बदले,
इनमें क्यों व्यर्थ भूले।
धोखे की है ये माया॥ जगत…

बाँधकर मुट्ठी किया था गर्भ में इकरार क्या,
श्याम सुमिरन तुझको अब नहीं दरकार क्या।
उस बड़े दरबार में मुँह कौन सा दिखलायेगा,
बंद हाथों आया था और खाली हाथों जाएगा।
अब दृग के ‘बिन्दु’ कहो मत,
हरि को ही दे दे काया॥ जगत…

By shayar

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