जो तू चाहे कि श्याम को,
मुझपर नज़र पहले।
तो उसके आशिकों की ख़ाकसा में,
कर गुजरे पहले।
तरीका से अजब इस इश्क़ की,
मंज़िल पर चलने का।
कदम पीछे गुजरते हैं गुजर-
जाता है सिर पहले।
उसी का घर बना पहले दिले-
मोहन की बस्ती में।
कि जिसका दोनों दुनिया दोनों-
से उजड़ा है घर पहले।
मज़ा तब है कि क़ुर्बानी में हर इक,
ज़िद से बढ़ता हो।
तब पहले, ये जो पहले, ये दिल
पहले जिगर पहले।
न रोए आँख तेरे ‘बिन्दु’ मोती,
ग़र्चे लुटते हैं।
यहीं रख यह, कि उल्फ़त में-
नफ़ा पीछे जरर पहले॥

By shayar

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