लब पर तबस्सुम आंख लजाई हुई सी है
ये बात क्या बने कि बनाई हुई सी है
कूए-हबीब में हैं जुनूँ-कोश बुलहवस
उट्ठी नहीं क़ियामत उठाई हुई सी है
ये चाल जानते थे कहां तुम फ़रेब की
ये चाल तो किसी की सिखाई हुई सी है
मिलती है किस से आप भी फरमाइए कियास
इक शक़्ल मेरे दिल में समाई हुई सी है
हाथों से निकला जाता है दिल अज़-ख़ुद ऐ ‘वफ़ा’
क़ाफ़िर तबीयत आजकल आई हुई सी है।