अब तो हम हैं और भरी दुनियाँ की हैं तनहाईयाँ.
“याद थीं हमको भी रंगारंग बज़्म अमराईयाँ “.
जल्वा-ए-लैला हो ऐ दिल! या ज़ुनुने-क़ैस हो.
इश्क़ कुछ सनकी हवाएँ,हुस्न कुछ परछाईयाँ.
इश्क़ को समझा अगर कोई तो चश्मे-दोस्त ने.
शोहरतें भी कम न थी,कुछ कम न थीं रुसवाईयाँ.
टूटती जाती हैं आसन,डूब जाते हैं दिल.
बढ़ती जाती हैं हयाते-इश्क़ की गहराईयाँ.
क्या पयामे-ज़िन्दगी को हाजते-लफ्जों-बयाँ.
तूने देखीं भी निगाहें-नाज़ की गोयाइयाँ.
शोखियाँ-हुस्ने-हया-परवर में ये कब थीं ‘फिराक़’.
रंग लाई रफ़्ता-रफ़्ता इश्क़ की रुसवाईयाँ.