आये हो वक़्ते-दफ़्न तो शाना हिला के जाओ।
आँख उसकी लग गई है, जिसे इन्तेज़ार था॥
मैयत तो उठ गई वो न आये नहीं सही।
‘साक़िब’ किसी के दिल पै, कोई अख़्तियार था?
आये हो वक़्ते-दफ़्न तो शाना हिला के जाओ।
आँख उसकी लग गई है, जिसे इन्तेज़ार था॥
मैयत तो उठ गई वो न आये नहीं सही।
‘साक़िब’ किसी के दिल पै, कोई अख़्तियार था?