उठ खडा़ हो तो बगोला है, जो बैठे तो गु़बार।
ख़ाक होकर भी वही शान है, दीवाने की॥
‘आरज़ू’! ख़त्म हक़ीक़त पै हुआ दौरे-मजाज़।
डाली काबे की बिना, आड़ से बुतख़ाने की॥
उठ खडा़ हो तो बगोला है, जो बैठे तो गु़बार।
ख़ाक होकर भी वही शान है, दीवाने की॥
‘आरज़ू’! ख़त्म हक़ीक़त पै हुआ दौरे-मजाज़।
डाली काबे की बिना, आड़ से बुतख़ाने की॥