सुंदर शिक्षा ज्ञानहित रच्यो ज्ञान प्रकाश।
पढ़ि है बालक युवक वृद्ध होय तिमिर का नाश।। 1
तिमिन नाश भए ज्ञान हो ज्ञान से धर्महिं प्रीति।
धर्म प्रीति में ईश है यह सद्ग्रंथन नीति।। 2
निवेदन
लिखत में सब से होत है, भूल ग्रंथ के माहिं।
सज्जन पढ़त सुधार तेहि दोष न देवहिं ताहिं।। 3
यासे मैं बिनती करहुँ शीश नवहुँ बहु बार।।
होवै ग्रंथ में भूल कहिं लेवैं सुजन सुधार।। 4