भजि लऽ रामजी के नइया बेड़ा पार होई।
एक दिन सोना के इ देहिया बेकार होई।
अइहें जम के सिपाही बन्हिहें मुसुकी चढ़ाई
छूटिहें सब अइँठलका तन लाचार होई।
पिता माता आउर नारी साला सरहज हो सारी,
केहू संगे नाहीं जाए के तइयार होई।
जब ले चलता ई तन करिलऽ हरि के भेजन,
एक दिन खटिया पर साँझ भिनुसार होई।
कहत द्विज महेन्द्र गाई चेत ल अबहूँ से भाई,
हरि के भजले से जिनगी निस्तार होई।