मौत जब तक नज़र नहीं आती
ज़िंदगी राह पर नहीं आती
तर्क-ए-तदबीर भी नहीं आसाँ
रास तदबीर अगर नहीं आती
दिल को लज़्ज़त-शनास-ए-ग़म कर लें
मौत हम को अगर नहीं आती
है अमीन-ए-वक़ार-ए-इज्ज़-ओ-नियाज़
वो तमन्ना जो बर नहीं आती
जिस ने तेरी नज़र को देख लिया
उस को दुनिया नज़र नहीं आती
अश्क-ए-पैहम ‘जिगर’ नहीं थमते
राह पर चश्म-ए-तर नहीं आती