सीना तो ढूँड लिया मुत्तसिल अपना हम ने
नहीं मालूम दिया किस को दिल अपना हम ने
अह्द क्या कर के तिरे दर से उठे थे क़िस्मत
फिर दिखाया तुझे रू-ए-ख़जिल अपना हम ने
मेरी आलूदगियों से न कर इक राह ऐ शैख़
कुछ बनाया तो नहीं आब-ओ-गिल अपना हम ने
सख़्त काफ़िर का दिल अफ़्सोस न शरमाया कभी
पूजा जूँ बुत तो बहुत संग-दिल अपना हम ने
पानी पहुँचा सके जब तक मिरी चश्म-ए-नम-नाक
जल बुझा पाया दिल-ए-मुश्तइल अपना हम ने
बाद सौ-ए-रंजिश बेजा के न पाया ब-ग़लत
न पशेमान तुझ मुन्फ़इल अपना हम ने
दर ग़रीबी न था कुछ और मयस्सर ‘हसरत’
इश्क़ की नज्र किया दीन ओ दिल अपना हम न